Basant Panchami in Uttarakhand: उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में बसंत पंचमी का त्यौहार बड़े हर्षोल्लाष और पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। लोग घरों में हरयाळी लगाते हैं और पंचमी के गीत गाते गाते हैं। विभिन्न स्थानों में मेलों के आयोजन होते हैं। इस दिन लोग गंगा स्नान का विशेष महत्व मानते हैं और अपने आस-पास की नदियों को गंगा समान मानकर पुण्य स्नान करते हैं। वहीं कृषक परिवार बसंत पंचमी से हलजोत का कार्य प्रारम्भ करते हैं।
बसंत पंचमी को उत्तराखंड के कुमाऊँ में ‘सिर पंचमी’ के नाम से जानते हैं। इस पर्व पर लोग अपने घरों के दरवाजे के चौखट पर गारे अथवा गाय के गोबर से जौ के पौधों को लगाते हैं। साथ ही यहाँ इन जौ के पौधों को अपने सिर पर रखते हैं। अन्य पर्वों की भांति लोक पकवान बनाये जाते हैं। वहीं गढ़वाल में बसंत पंचमी को ‘मिठु भात’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ इस दिन मीठे चांवल (मीठा भात) खाने की परम्परा है।
बसंत पंचमी के अवसर पर यहाँ लोग अपने किशोरों के जनेऊ संस्कार संपन्न करवाते हैं। हर शुभ कार्य की शुरुवात आज के दिन से की जाती है। मान्यता है बसंत पंचमी पर जो भी कार्य शुरू किया जाता है उसके लिए कोई भी लग्न सुझाने की आवश्यकता नहीं होती। आज के दिन यहाँ बच्चों के नाक-कान छेदना शुभ माना जाता है।
वहीं बसंत पंचमी के दिन यहाँ हलजोत यानि खेत में जुताई कर बुवाई का कार्य प्रारम्भ करने की परम्परा है। जिस परिवार के पास बैलों की जोड़ी है वे खेत में जाकर रस्म के तौर पर जुताई प्रारम्भ करते हैं वहीं जिस परिवार के पास बैल नहीं होते वे धूप, दीप, खाद, कुदाल लेकर खेत में जाते हैं और वहां खेत तैयार कर हलजोत की इस पारम्परिक रस्म को पूरा करते हैं।
कुमाऊँ में बसंत पंचमी के दिन से बैठकी होली की शुरुवात हो जाती है। इस दिन से श्रृंगार रस के होली गीत गाये जाने लगते हैं। वहीं चारधाम यात्रा की तैयारियों की शुरुवात भी बसंत पंचमी के दिन से हो जाती है। इस पर्व पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि निकाली जाती है।
पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ ही उत्तराखंड में बसंत पंचमी (Bansat Panchami in Uttarakhand) के दिन से छोटे बच्चों की विद्यारंभ करवाई जाती है। उनके लिए पठन-पाठन की चीजें खरीदी जाती है। बच्चों को पीले रुमाल प्रदान किये जाते हैं।
बसंत पंचमी के दिन से बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है। अब पहाड़ों में ठण्ड समाप्ति की ओर होता है। यहाँ प्रकृति नये रंग-रूप में दिखनी प्रारम्भ होने लगती है। प्योंली, बुरांश, आड़ू, मेहल आदि नाना प्रकार के फूलों के पहाड़ सजने लगते हैं। न्योली, घुघूती और कफुवा अपनी मधुर बोली से पहाड़ में आये बसंत का स्वागत करते हैं।